Quick Hi!

Thank you my quirky reader. It does not matter who you are and where you from but my words sure are from the heart. You may follow, read at leisure and leave a comment. You may share the good word if you like a quickie note or even if you do not I am okay with you peeping here once in way ..there will always be something for you at Fortified Quickies from writingdoll. Some words may sting or bite but some may soothe your soul.
Quirky reading !!!
Cheers!
Mridual

Be warned against plagiarism. I take it seriously. (Do not cut, copy, paste any original content)

Wednesday, May 31, 2017

Mac Cheaters

I generally would refrain from complaining against people. But this one may not be a solitary case of cheating so I must share this reality about MAC n other Apple Service Centres.

Let me say that we are a big Apple family with at least 16 gadgets or more among we siblings.

Once in 2012 my mac book pro had some issue I took it to this service centre at Charni road..see details in pictures. They replaced the hard disk and charged rupees1000 for servicing plus HD cost. Data recovery was to cost extra and as they were closing they asked me to come again with new request.

I took the old hard disk to the technical support guy at Croma (after 2 years) to recover my data. Wow..The hard disk was not corrupt.  It was fine. Never mind he too charged me rupees 1000 to recover information from an open disk. I could have bought a case for 400 and done the recovery...sorry data transfer because it was not really a recovery but for the lack of knowledge I paid. The second guy was at least educating me about it.

I was appalled n surprised. Most of us who are not aware of the technical details are gullible and can easily be ripped. That too by reputed companies. Earlier there were not many  Apple technicians. Now there are many service centre's n dedicated Apple stores. Please refer 2 to 3 places n people before you get your gadgets repaired.

Issued in the public interest. ..

#Writingdoll #apple #MACbook #Apple

Tuesday, May 23, 2017

तेल मालिश

तेल मालिश 


नारियल तेल सर में उँडेल कर, आँखे मूँद कर, उँगलियों के पोरों को धीरे धीरे सर में फ़िराने लगी। पर पाँच मिनट में ही हाथ थक गए। हाथ नीचे कर, आँखे मूँदे मूँदे मैं माँ को याद करने लगी। मेरी माँ, मेरी मम्मी अक्सर तेल लगा दिया करती थी। संयुक्त परिवार में तो कोई ना कोई तेल लगवाता या लगाता रहता था। मुझे भी किसी से तेल लगवाना बहुत अच्छा लगता था। मज़ा आता है किसी अपने के जाने पहचाने हाथों का स्पर्श लेकर। अक्सर मैं आग्रह से कि- ‘थोड़ा और, थोड़ा और कर दो’- कहते कहते प्यारी सी नींद भी ले लेती थी। तेल लगाना मेरे लिए सुखद प्रक्रिया है।आज भी बहुत मन था तो तेल सर पे उँडेला, पर स्नेह का स्पर्श भरे हाथ अपने ही कैसे हो सकते है। 

बचपन के दिन याद आ गए। मुझे तेल लगवाना ही नहीं किसी और के लगाना भी अच्छा लगता था। असल में मैं अच्छी चंपि करती थी और मेरे छोटे छोटे हाथों से तेल लगवा कर सबको अच्छा लगता था। मैं बाक़ी बचचों की तरह जल्दी जल्दी निबटा कर भागना भी नहीं चाहती थी। सो सब की चाहेती थी। कभी कभी चंपि करके दस पैसे भी मिलते थे वरना आशीर्वाद, प्यार और असीसें तो हमेशा मिलती थी।

मेरी माँ अध्यापिका थीं, बहुत सारा काम करती थीं और हर काम फुर्ती से करती थी। तेल भी जल्दी जल्दी लगा देतीं थी। जब उन्हें वक़्त ना मिलता तो मैं मुझ से छोटे भाइयों से सर की मालिश भी करवा लेती थी। नन्हें हाथों में सचमुच जादू होता है, अब मुझे समझ आ गया था।

आज मैं महानगर में अकेली थी। बिलकुल अकेली। हल्का सा सर भारी लग रहा था तो मैं तेल की शीशी उठा लायी। शहरों में बहुत कुछ मिलता है पर फिर भी बहुत कुछ छूट जाता है जो सिर्फ़ परिवारों में मिलता है। ख़ैर अजीब सी कसक लिए हाथ उठा कर पोरों पर ज़ोर दिया तो शायद दिमाग़ के किसी कोने से यादों का स्विच ही आन हो गया।

मेरी ममी बेहद स्टाइलिश औरत हैं। जवानी में तो और भी ब्राण्ड कॉंशियस थी। वो कन्थराडीन नामक तेल ही लगाती थीं और मुझे उसका सुनहरा पीला रंग और ख़ुशबू दोनो बेहद पसंद थे पर जाने कौन सी वजह से मेरी ममी मुझे वो तेल नहीं लगाने देती थी। मेरे लिए था सिर्फ़ नारियल और सरसों का तेल। ख़ैर जो भी वजह हो पर यह मन भी ना। बस एक दिन चीन पर रखी एक कटोरी में सुनहरा रंग दिखा तो झट उँगलिया डाल कर बालों के ऊपर हाथ फिरा लिया। ममी तो स्कूल चली गयीं थी सो डर भी नहीं था। अगले कुछ घंटे तो बिलकुल नहीं। मुझे ऐसा लगा कि आज मैंने मैदान मार लिया। फटाफट अपने दमकते चेहरे और चमकते बालों पर एक नज़र मारी और मैं स्कूल का बसता लाद कर घर से निकल गयी। मैं पैदल ही स्कूल जाती थी। स्कूल पास ही था। १-२ किलोमीटर। रस्तें में मुंसिपलटी के कूड़े दानो के पास से गुज़री तो मखियों का झुंड मेरे सर पर मँडराने लगा। कितनी भी उड़ाया मगर वो ज़िद्दी अड़ियल मखियाँ थकी नहीं और पूरे दो किलोमीटर मेरे साथ साथ मेरे सर पर मँडराती रही। अजीब लग रहा था। मैं रास्ते भर गंदगी फैलाने वाले लोगों को कोसती रही। अनपढ़ गँवार मखियाँ, सारे पिरीयड, पूरे दिन मेरे सर पर सवार मेरे साथ स्कूल भर में घूमती रही। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। क्या इसीलिए मेरी ममी मुझे यह तेल नहीं लगाने देती थी। ऐसे क़िस्म क़िस्म के कई सवाल मेरे दिमाग़ में कौंधने लगे। अब तो स्कूल की छुट्टी का समय हो रहा था। डर भी लगना शुरू हो गया।

घर पहुँच कर मैंने हाथ मुँह धोया पर दो चार मखियाँ फिर भी सर पर चक्कर लगाती रही। मेरी हालत अजीब थी। ना तो कुछ पूछ सकती थी और ना ही बता। ममी भी स्कूल से आ गयी। 

खाना खा कर बैठे तो ममी ने पूछा, “यहाँ चीन पे शहद रखा था, कटोरी में, किसने गिरा दिया?”

मैंने ऊपर की तरफ़ देखा और सोचा, हाथ तो मेरा ही लगा था, लुड़क गयी होगी कटोरी। मैं सोचने लगी पर बोली कुछ भी नहीं। 

“सुना तुमने बेटा, यहाँ शहद रखा था कटोरी में”, ममी ने कहा । 

“शहद?”  मैंने सकपका कर पूछा। दिमाग़ की सारी बतियाँ जल गयी । बस सारी गुथियाँ सुलझ गयी। मैं अपने चिपके चिपके मीठे बालों  में हाथ फिरा कर, बची हुई तीन मखियाँ जो मेरी चोरी की गवाह थी, के साथ चुपके से वहाँ से खिसक ली।


मृदुल प्रभा

मेरी आने वाली किताब में  से एक 

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