Quick Hi!

Thank you my quirky reader. It does not matter who you are and where you from but my words sure are from the heart. You may follow, read at leisure and leave a comment. You may share the good word if you like a quickie note or even if you do not I am okay with you peeping here once in way ..there will always be something for you at Fortified Quickies from writingdoll. Some words may sting or bite but some may soothe your soul.
Quirky reading !!!
Cheers!
Mridual

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Monday, October 20, 2014

Fauj ki Daaru

(Written in a lighter vein and is not directed at any one person.. बहुत लोग दिल पे ले सकते हैं। Please know you are not the only one.. :) Enjoy..Happy Diwali.


आर्मी? आप आर्मी में हैं?
मेरे husband.
पहले क्यों नहीं बताया, अरे वह आप से एक काम है।  कुछ चाहिए।
क्या दारु ? एक  स्वाभाविक प्रश्न मेरे मुंह से निकल गया।
अरे हाँ.. एक तो फ़ौज की दारु बहुत सस्ती मिलती है और दूसरा बहुत pure  होती है.  उन्होंने justify kiya..

Well, फौजी की बेटी हूँ, फौजी की बीवी हूँ,, और फ़ौज के दारु के बारे में यह सुनते सुनते उम्र बीत गयी.  नहीं मैं किसी को जज नहीं कर रही पर सच मानिये फ़ौज से जुड़े होने का जो मान एक फौजी परिवार को कभी मिलता था वह अब सस्ती शराब में बह गया। हमारी ख़ासियत यही रह गयी. यह सच है कि एक जनरल ने तो ट्रक भर दारू बेची शायद इसी वजह से दारु फ़ौज की पहचान सी हो गई है.

मैं कभी पीती नहीं थी, पर पति शौक से पीते थे और उनके दोस्त भी और सोशल पार्टीज में फ़ौज में दारु बहुत आम और सहज सी बात है इसलिए हम ने भी बढ़िया से बढ़िया क्रिस्टल के गिलास इकट्ठा कर लिए थे। We faujis actually drink in style. Beer tumblers, mugs, Champagne, Whiskey, Wine glasses, crystal decanters in various shapes and ice pale were part of my Opera crystal collection. Even the choicest bottle openers, cork openers and tongs are a collectors delight and so is my husbands collection of daaru.

Ladies do drink socially and I am not averse to it. Its just that I never felt like but when people pester a lot I ask for Champagne and only few would have it. होगा भी तो सिर्फ मेरे लिए शैम्पेन खोलने के लिए दिल चाहिए.  आधी प्रॉब्लेम तो ऐसे ख़त्म हो जाती है. Once a senior officer actually got after me to drink Vodka and I told him, "Main bina piye logon ki aisee taisee kar deti hoon, aap ne Vodka pila ke apni karvani hai kya." Well he had actually pissed me on many occasions सो मुझ से रहा नहीं गया। The youngsters (young officers) told me in the party "Ma'am sahi diya". What ever ... I tell the same to my husband daaru pila ke kya poochna chahte ho.. aise bata deti hoon..kisi ke baap se darti hoon kya.

चलिए हम ने शुरू भी नहीं की और शादी के दस साल बाद पति ने भी छोड़ दी. अब हम अपने क्रिस्टल के गिलासों में दूध और लस्सी और पानी पीते हैं।  दुःख तो होता है पर ठीक है.  वैसे भी आज कल लोग अधिकतर ड्रिंक्स जैसे ब्रीज़र्स और बियर बोतल से ही पी लेते हैं। वैसे आप को एक बात बताऊँ न ता फौजी दारु कोटा अनलिमिटेड है और न ही फ्री.  आज कल पहले की तरह पीने वाले भी नहीं बचे.  फ़ौज में अब बहुत कम अफसर दारु पीते हैं और लुढ़कने वाले  तो बिलकुल नहीं दिखते जैसे हमे बचपन में दीखते थे।  अलबत्ता औरतों के तौर तरीके बदले हैं और वोदका, बियर और ब्रीज़र्स लेडीज में काफी लोकप्रिय हो गए हैं. और उन्ही में से कुछ लुढ़कने वालों की कमी भी पूरी कर देती हैं. अधिकतर लेडीज बिना पिए डांस फ्लोर पर पैर नहीं रख पाती इसलिए पीती है.  सो लगभग उनके पति का कोटा पूरा हो ही जाता होगा। हमारे जैसों का कोटा दोस्तों के वास्ते हो जाता है।  अब जिनको यह बात मालूम है वह दोस्त रिश्तेदार इसका फायदा ले लेते हैं।  इतना तो दोस्तों के लिए बनता है. पर कभी कभी भलाई भी मुसीबत बन जाती है.  हमारे एक बहुत नज़दीकी दोस्त जो पीने के शौक़ीन थे हमारे कोटे के चलते इतना पीने लगे कि लिवर जवाब दे बैठा।  हमें इतना अफ़सोस पहले कभी नहीं हुआ।

पीते नहीं तो क्या, पिला देते हैं … थोड़ी थोड़ी। . वह ग़ज़ल है न.… महंगी हुई शराब की थोड़ी थोड़ी पिया करो. हम कहते हैं कि सस्ती भी ले लो जनाब, पर थोड़ी थोड़ी पिया करो… न हो जाये लिवर ख़राब, थोड़ी थोड़ी पिया करो।
P.S  I will edit the portion written in English and perhaps write it again later... in Hindi. Due to bad internet I had typed in English.. Just finished this at the Airport before my flight... Posting it right away.. dekh lena.. typos. :)



हम तो चौपालिये हो गये

जैसे एक शराबी मयख़ाने में सकूँ पाता है एक लेखक चौपाल या बैठक में, जहाँ उसके जैसे सुनने सुनाने वाले मिलें। पिछली बार, जब पहली बार चौपाल में पहुँचे, तब से हम तो चौपालिये हो गये। आज किसी ने पूछा कि समन्दर का किनारा छोड़ कर इतनी दूर धूल फाँकने क्यों आ जाते हो? अरे इसी नशे के कारण। एक विचित्र जीव होता है लेखक जो अपनी ही दुनिया में रहता है। ठीक उस शराबी की तरह.। अपनी ही तरह के लोग… बच्चों जैसे। शब्दों से खेलने वाले, कुछ अपने आप से बातें करने वाले पागल, किसी रूह को यार कहने वाले… बड़े अजीब होते हैं यह लोग। पिछली दफ़ा पाँच घण्टे कैसे बीते पता ही नहीं चला।  कुछ लोगो ने कहा, "अब तक की सबसे बढ़िया चौपाल थी" और हमारी पहली। क्या इत्तिफ़ाक़ है न। आज दूसरी बार फिर से मज़ा आ गया . संस्मरणों की चौपाल में कुछ ने गुदगुदाया और कुछ ने तह दर तह जा कर पुरानी यादों को कुरेद कर रख दिया.  किसी की रेल यात्रा थी और कोयला मेरी आँखों में चला गय।,  पगली मैं बहुत रोई.

फिर एक व्यंग्यकार ने इतना हँसाया कि शिकायतें दूर हो गयी. एकाद्शी के पावन दिन पर जीवन की कई सच्चाइयों का पता चला। चौपाल में जा कर अपने ही जैसे लोगों से मिल कर महसूस होता है मुझ जैसी मैं ही नहीं मुझसे बरसों पहले इस दुनिया में आये हुए लोग भी है। यही एहसास मेरी रूह को सकूँ देता है…